मग़र याद रखना मैं आब हूँ बेरंग सा, और रूह बदरूह है तुम्हारी। मग़र याद रखना मैं आब हूँ बेरंग सा, और रूह बदरूह है तुम्हारी।
हमारे माथे की बिंदी है हमारी हिन्दी हमारे माथे की बिंदी है हमारी हिन्दी
गम ही तो है साथी जो हर मौसम में साथ निभाता है गम ही तो है साथी जो हर मौसम में साथ निभाता है
कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं
निकल पड़े हैं और यूँ कौतूहल से जा पहुँचे मिलने किसी नज़्म से नाज़ुक नज़्म घबराई निकल पड़े हैं और यूँ कौतूहल से जा पहुँचे मिलने किसी नज़्म से नाज़ुक नज़्म घबराई
आओ देखो... बैठा हूँ लेकर मैं इस मेज पर, कोरा, सफ़ेद एक काग़ज़ और एक पेन्सिल... आओ देखो... बैठा हूँ लेकर मैं इस मेज पर, कोरा, सफ़ेद एक काग़ज़ और एक पेन्सिल...